Karwa Chauth Vrat 2018 : क्या है करवा चौथ का व्रत कथा, पूजन विधि, पूजन सामग्री और ये गलतियाँ ना करें वरना अशुभ हो सकता है|

  कब और कैसे करे करवा चौथ का व्रत 

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 करवा चौथ 2018 का मुहूर्त समय
27 अक्तूबर
करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 17:36 से 18:54
चंद्रोदय- 20:00
चतुर्थी तिथि आरंभ- 18:37 (27 अक्तूबर)
चतुर्थी तिथि समाप्त- 16:54 (28 अक्तूबर)     

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ अथवा करक चतुर्थी मनाया जाता है| इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए गणेश जी की पूजा करने का विधान हैं| क्योकि सभी देवों में इन्हें अनादि देव माना गया है| करवा चौथ के दिन व्रती को नित्य कर्म से निवृत होकर गणेश जी की पूजा का मन से दृढ सकल्प करना चाहिए की मैं आज दिन भर निराहार रहकर गणेश जी के ध्यान में तत्पर रहूंगी और रात्रि में जब तक चन्द्र उदय नहीं होता तब तक निर्जल व्रत करुँगी|
     व्रत के दिन शाम में घर की दिवार को गोबर से लीपकर उसके गेरू की स्याही बनाकर उसमें गणेश, पार्वती, शिव, कार्तिक आदि की प्रतिमा बनानी चाहिए| साथ ही एक बरगद का पेड़, मानव की आकृति बनाकर दिखानी चाहिए| उसके हाथ में छलनी भी होनी चाहिए| पास में उदित होते हुए चाँद की आक्रति भी उसी दिवार होनी चाहिए|
Karwa Chauth Wrat 2017 : क्या है करवा चौथ का व्रत कथा, पूजन विधि, पूजन सामग्री और ये गलतियाँ ना करें वरना अशुभ हो सकता है|
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करवा चौथ पूजा विधि और सामग्री

     पूजन काल में प्रतिमा के नीचे दो करवों (तांबा, पीतल या मिट्टी का पात्र जिसमे टोटी लगा हो) में जल भरकर रखना चाहिए| उस करवें के गले में नारा लपेटकर सिंदूर से रंगना चाहिए और उसके टोटी में सारे (एक प्रकार का तृण) की सिंक लगानी चाहिए| करवें के उपर चावल से भरा कटोरा जिसमे सुपारी भी रखनी चाहिए| नैवेद्य के रूप में चावल की बनी लड्डू रखें| इसके अतिरिक्त ऋतू फल के अनुसार केला, नारंगी, गन्ना, आदि, जो कुछ भी उपलब्ध हो अर्पित कर कथा सुने |

करवा चौथ व्रत कथा

      एक साहूकार के सात पुत्र और एक पुत्री थी| कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन साहूकार की पत्नी, उसकी सभी बहुओं और कन्या ने मिलकर व्रत का अनुष्ठान किया| सभी ने शाम को एक साथ गणेश पूजा किया| पूजन के बाद साहूकार के सभी पुत्र भोजन करने बैठे| भाइयों ने बहिन से भी भोजन करने को आग्रह किया| बहिन ने उत्तर दिया -तुम सभी बोजन कर लो मैं चन्द्र उदय को अर्ध्य देने के बाद ही भोजन करुँगी |बहिन की बात सुनकर भाइयों ने कुछ दुरी पर आग जला दी और प्रकाश को छलनी में से दिखाकर कहा -बहिन! देखो ,सामने चन्द्रमा निकल आया है |अब तुम भी भोजन कर लो |भाई की बात को सुनकर बहिन ने भी भाभियों से ये बात दोहराई| उसकी भाभियों को ये कपटपूर्ण बात को जानती थी| उन्होंने उसे कहा अभी चन्द्र नहीं निकला है| परुन्तु उसने अपनी भाभियों के बात पर धयान नहीं दिया अर्ध्य दे दिया और भोजन कर लिया| उसके इस कृत्य से गणेश जी अत्यंत क्रोधित हो गए जिसके फलश्वरूप उस कन्या का पति भयंकर रोग से ग्रसित हो गया और वह शोकाकुल होकर कष्ट भोगने लगी|
                                                जब उससे अपनी भूल का ज्ञान हुआ तो मन में पस्चाताप करने लगी| उसने अपनी भूल के लिए गणेश जी से छमा याचना की और व्रत को भक्तिपूर्वक पूरा किया| उसकी आराधना से गणेश जी प्रस्सन हो गये ओर सभी कष्टों का निवारण कर उससे धन -धान्य से पूर्ण किया|
         अतएव इस वर्त को जो प्राणी विधिपूर्वक संपन्न कर लेता हैं, उसकी सभी आशाएं पूरी हो जाती हैं| इस प्रकार कथा सुनने के बाद चन्द्र उदय होने पर चन्द्र देव को अर्ध्य प्रदान करना चाहिए|अर्ध्य में जल,अक्षत ,चन्दन,ऋतू फल आदि को देना चाहिए| घी का दीपक जलाकर चन्द्र देव को दिखाना चाहिए| अर्ध्य या दान काल में "ॐ चंद्राय नमः" मंत्र का उच्चारण करना चाहिए| इसके बाद चार बार परिक्रमा कर चंद्रदेव को दंडवत करना चाहिए |और पति के हाथ से जल ग्रहण कर ही वर्त खोलना चाहिए| पूजाकाल में अर्पित नैवैद आदि को ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए| इस प्रकार भक्तिभाव से जो स्त्री इस चतुर्थी वर्त को पूरा करती हैं उसका सौभाग्य और मनोकामना पूर्ण होता  हैं | 


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 करक चतुर्थी (करवा चौथ )  उद्यापन विधि 


किसी भी वर्त की पूर्णता पर ही उसका उद्यापन करना चाहिए| वर्त की तिथि पर ही उद्यापन किया जाता है| जिस वर्ष में उदयाप्न करना हो, उस वर्त की कार्तिक कृष्णा चतुर्थी के दिन वर्त समाप्त होने के बाद एक थाली को कुमकुम से रंजित कर चार -चार की संख्या में पूरी और शक्कर रखकर तेरह स्थान पर रख दे, एक साड़ी ब्लाउज, श्रृंगार  दक्षिणा रख कर अपनी सास को अर्पण कर दे| जिसकी सास न हो ब्राह्मणों को दान कर दे| उसके बाद तेरह ब्राहमणों को भोजन कराकर उन्हें द्रव्य दक्षिणा दे कर विदा करें| उसके बाद ही स्वं भोजन ग्रहण करे ऐसा करने से आपका शौभाग्य अक्षय बना रहेगा|

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